Saturday, February 18, 2012

हमें लाज तक नहीं आती:ना खुद से, ना खुदा से.

काफी भाग -दौड में हूँ इन दिनों . आज कल हम में से कई लोग भाग-दौड में व्यस्त हैं. कईयों को तो सोने कि भी फुर्सत नहीं. पता नहीं कौन से वक्त में हम सांस ले रहे हैं. बस मशीन भर रह गए हैं. अपनों से दूर जा रहें हैं हम लोग. तनहा . जब अपने मिलते नहीं तो फोन भर उठा के मेसेज कर देते हैं-" मिस यू". जब पास आते हैं अपने तो फोन पर हम  बहाना बना देते हैं- अभी शहर में नहीं हूँ.  ऐसा नहीं है कि पैसा हम बाबूजी के ज़माने से कम कमा रहे हैं.दिल भी उतना छोटा नहीं है. पर फिर भी अपनों से मिलने में हममें में से कई लोग कतराने लगे हैं.वक्त की कमी इन सबके पीछे का विलेन है. हम बीजी होकर भी नोट कि मशीन नहीं बन गए हैं. न ही हमारी आधुनिक सुविधाओं से हमारे सुख में इजाफा हुआ है. फिर भी हम कार में बैठ के इतराते हैं. लेज़र टीवी लेकर सीना चौड़ा करते हैं. घर पर बाई रख कर स्टेटस बढ़ाते हैं. फिर भी हम जिन अपनों से " आगे " बढे हैं, उनको इन सब "प्रगति" को घर पर बुला कर दिखाने तक का वक्त नहीं.
लेकिन जब तक हम शो-ऑफ न करें, तो हम बड़े कैसे होंगे. हम विदेश से लौटे हैं, ये जब तक अपनों को मालूम नहीं चले तो एयर-फेयर वसूल कैसे होगा. फेसबुक है न.. सब अपलोड कर दो. न चिप-चिप, न झिक-झिक. सबको खबर हो जायेगी. जब वो विविध भारती जैसे भूले बिसरे "अपने लोग" घर पर आकर खुशी में शामिल होना चाहें- तो फोन पे झट से कह दो -अभी मैं बाहर हूँ.... और फिर बाद में उन्हें ही ताने दो- क्या यार , तेरी तो कोई खबर ही नहीं...
ऊफ किस दुनिया के हिस्से बन गए हैं हमलोग? हमें लाज तक नहीं आती- न खुद से, न खुदा से..

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